अ : दीदी चलो न कुछ खेलते हैं | मैं बहुत bore हो रही हूँ |
व : अच्छा तो हम एक new game खेलते हैं | तुमने कभी अंताक्षरी खेली है ?
अ : हाँ, उसमे जिस letter से opposite team का song खत्म होता है उससे हमे दूसरा song गाना होता है | जो नहीं गा पाता last में वो हार जाता है |
व : हाँ पर हम songs की जगह भजन गायेंगे और दूसरा व्यक्ति उससे related कुछ बताएगा और फिर उससे related दूसरा भजन गायेगा | जो मतलब नहीं बता पायेगा वो हार जायेगा |
अ : अच्छा तो मैं स्टार्ट करती हूँ |
**हम तो कबहुँ न निज घर आये ।
परघर फिरत बहुत दिन बीते, नाम अनेक धराये ॥**
व : कवि दौलतराम जी ने इस सुन्दर भजन में जीव के संसार भ्रमण का वर्णन किया है | हम अनादि काल से बाहर पुद्गल की पर्याय में ही रम रहे हैं | आज तक हमने अपने घर यानि आत्मा की सुध नहीं ली | चलो अब मैं भजन गाती हूँ तुम मतलब बताना |
**अपनी सुधि भूल आप, आप दुख उपायौ,
ज्यौं शुक नभचाल विसरि नलिनी लटकायो ।।**
अ : कविवर प. श्री दौलतराम जी ने इस दूसरे भजन में तोते का दृष्टांत देकर आत्मा का सिद्धांत समझाया है | जैसे तोता उड़ना भूलकर जाल में फंस जाता है उसी तरह आत्मा अपने आप को भूल कर संसार में दुखी हो रहा है | अच्छा अब इसका मतलब बताओ |
**जिन बैन सुनत मोरी भूल भगी ।।
कर्मस्वभाव भाव चेतन को, भिन्न पिछानन सुमति जगी | **
व : अरे वाह | तुमने तो तोते को जाल से निकलने का उपाय बता दिया | जिनवाणी सुन कर हम अपनी भूल को सुधार सकते हैं | जीव और कर्म न्यारे हैं ऐसा जिनवाणी में कहा गया है और इनको भिन्न पहचान कर हम सुखी हो सकते हैं | अब ये सुनो
**ज्ञायक महिमा सुनते-सुनते, बस ज्ञायकमय जीवन होवे |
निज ज्ञायक में ही रम जाऊँ, सुनने का भाव विलय होवे।।**
अ : क्या line गायी है आपने ! अपने ज्ञायक की महिमा जिनवाणी माँ से सुन्ते हुए ज्ञायकमय ही जीवन हो जाए | अपने ज्ञायक में ही इतना लीन हो जाऊ की फिर जिनवाणी सुनने का भाव भी नहीं आए | चलो तो फिर इस पर ही एक भजन आपको सुनाती हूँ |
**मेरे कब ह्वै वा दिन की सुघरी ।।
तन विन वसन असनविन वनमें, निवसों नासादृष्टिधरी ।।**
व : मेरा वह शुभ दिन कब आएगा जब मैं निर्ग्रन्थ होकर वन में नासा दृष्टि धरूंगा | दौलतराम जी ने अपने भजन में शब्दो को ऐसे पिरोया है जैसे कोई माला में मोती हो | चलो अब खेल को बंद करते हैं एक भजन के साथ |
**निर्ग्रथों का मार्ग हमको प्राणों से भी प्यारा है|
दिगम्बर वेश न्यारा है……निर्ग्रथों का मार्गं…….॥**
अ : वाह दीदी बहुत मजा आया | पर इसमें जीत किसकी हुई ?आपकी या मेरी ?
व : दोनों की | हम दोनों ने ही जैन धर्म की इतनी अच्छी बातें करके और भजन गाकर अपने अमूल्य समय का सदुपयोग किया | अगर हम कोई और game खेलते तो वो पाप भाव को ही बढ़ाता |
अ : हाँ तो अबसे हम ये ही गेम खेला करेंगे | और खेल खेल में आत्मा का भेद-ज्ञान किया करेंगे |