यह चर्चा है दो मित्रो की | एक का नाम था शुभ और दूसरे का शुद्ध | दोनों ही जैन धर्म के श्रद्धानी और तत्त्व की रूचि वाले थे |
यह बात श्रुत पंचमी के दिन की है | दोनों जिनवाणी की भक्ति करके घर लौट रहे थे, तब उनके बीच जो बात हुई वह कुछ ऐसी थी –
शुभ – यार शुद्ध ! आज तो भक्ति में बहुत ही आनंद आगया |
शुद्ध – हाँ ! सो तो है |
शुभ – कितना अपूर्व होगा वो दिन जब श्री पुष्पदंत और भूतवली मुनिराज ने जिनवाणी को लिपिबद्ध करने के लिए षट्खण्डागम की रचना की थी !!
शुद्ध – इसी दिन तो महामंत्र की भी रचना हुई थी | पंचम काल में जहाँ स्मरण शक्ति इतनी कम है की कल का याद किया आज भूल जाते हैं | ऐसे में जिनवाणी का विरह न हो, इसलिए इस ग्रन्थ की रचना हुई थी |
शुभ – अहो ! यह तो उनका हमारे ऊपर महान उपकार है |
शुद्ध – इस उपकार का सही मूल्य तो जिनवाणी की विनय करना है |
शुभ – हाँ, तो हमने आज कितनी भक्ति की और सुबह श्रुत पंचमी की पूजन भी की थी | क्या यह जिनवाणी का आदर नहीं है ?
शुद्ध – यह तो बहुत अच्छी बात है की हमे जिनवाणी की भक्ति करने के इतने भाव आये | पर जिनवाणी की सच्ची विनय और आदर मात्र ये नहीं होते |
शुभ – तो फिर जिनवाणी का सच्चा बहुमान कैसे होता है ?
शुद्ध – जिनवाणी को समझ कर पढ़ना और जो पढ़ा उसका विचार करके अपने जीवन में उतरना ये ही सच्ची विनय है | सिर्फ ढ़ोक देके और एक स्तुति बोल के निकल जाने से कुछ नहीं होता |
शुभ – ओह ! क्या जिनवाणी को संभाल के रखना-उठाना और उसको पढ़ते समय गंदे हाथ नहीं लगाना, ये सब जिनवाणी का बहुमान नहीं है ?
शुद्ध – हाँ ! ये व्यवहार विनय है | इसके अतिरिक्त पूजन के बाद जिनवाणी में से चावल निकलना, उनको समय-समय पर कवर करके रखना, जिनवाणी के ऊपर से नहीं फलांगना, कोहनी टिका के नहीं बैठना, लेटे-लेटे जिनवाणी नहीं पढ़ना इत्यादि भी जिनवाणी का सम्मान करना है |
शुभ – ये बात तो तुमने बिलकुल सही कही | जब हम हमारे स्कूल की किताबें इतनी संभाल के रखते हैं, तो फिर जिनवाणी तो हमारी माता है | जो हमे इस लोक के ही नहीं, पर लोक के भी संस्कार देती है |
शुद्ध – तो चलो हम आज से ही निश्चय करते हैं की रोज जिनवाणी का स्वाध्याय करेंगे और इस श्रुत पंचमी के पर्व को सार्थक मनाएंगे |
शुभ – मैं आज से रोज स्वाध्याय करने का नियम लेता हूँ |
………………………..ऐसे ही बात करते करते दोनों अपने-अपने घर के लिए मुड़ गए |
इतनी मार्मिक थी हमारे शुभ और शुद्ध की चर्चा | तो देर किस बात की है ? आप भी नित्य स्वाध्याय का नियम लें और जिनेन्द्र परमात्मा की वाणी का बहुमान करें |
जय जिनेन्द्र |