म- उठो बेटा | उठो. मंदिर नहीं जाना क्या ?
व- अरे मम्मी ! सोने दो न, आज तो वैसे भी महावीर जयंती की छुट्टी है |
म- महावीर जयंती नहीं महावीर जन्म कल्याणक बोलो |
व- हाँ ठीक है | अब सोने दो अब मुझे |
म- ये छुट्टी सोने के लिए नहीं मिली है | आज तो तुम्हे भगवन महावीर की भक्ति करनी चाहिए | आज चैत्र शुक्ल तेरस के दिन उनका जन्म हुआ था |
व- हाँ तो उनमे ऐसा क्या खास था ? जन्मदिन तो मेरा भी हर साल आता है |
म- यही तो ख़ास बात है की अब उनका जन्मदिन कभी नहीं आएगा | तुम अपना जन्मदिन तो बहुत उत्साह से मानती हो, मिठाइयां खाती हो, नए कपड़े पहनती हो और धूम मचाती हो लेकिन यह तो भगवान महावीर का अंतिम जन्म महोत्सव है | उनका जन्म तो असंख्यात जीवो के कल्याण का कारण बना है | इसके बाद तो उनके जन्म-मरण का नाश होगया |
व- कौन थे ये भगवान महावीर जिन्होंने जन्म मरण का ही नाश कर दिया ?
म- महावीर भगवान हमारे इस काल की चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर थे | उनका जन्म कुण्डलपुर में रानी त्रिशला और राजा सिद्धार्थ के यहाँ हुआ था |
व- अच्छा फिर तो राजकुमार महावीर के पास बहुत वैभव होगा |
म- स्वर्ग के देव भी जिनकी सेवा करने आते थे, ऐसे राजकुमार वर्धमान का मन राज पाट में कभी नहीं लगा | वे तो सदा चिंतन में लगे रहते थे और गूढ़ तत्वचर्चा किया करते थे |
व– तो फिर वे राजकुमार से भगवान कैसे बने?
म- तीस वर्ष की उम्र में उन्होंने दीक्षा धारण की और वो मुनि होगये | ऐसे बारह वर्षो तक तपस्या करने के बाद उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई | मोह-राग-द्वेष रूपी शत्रुओ को पूर्णतया जीत लेने से वे सच्चे महावीर बने |
व- अरे वाह | बारह वर्ष की घोर तपस्या | और मैं यहां सो रही हूँ | मुझे भी महावीर जन्म कल्याणक मानना है | पर मुझे करना क्या होगा ?
म- इस दिन को घूमने-फिरने और सोने में व्यर्थ नहीं करना चाहिए | प्रत्येक जैन का कर्त्तव्य है की सुबह जल्दी उठकर महावीर भगवान की पूजा, भक्ति करे | नगर में निकलने वाली शोभा यात्रा में शामिल हो |
व- और इसके अलावा ?
म- इसके अलावा भक्ति-पूजन करते समय ऐसा चिंतन करना चाहिए की जैसे भगवान महावीर ने कर्मों का नाश करके अनंत सुख को प्राप्त किया ऐसा सुख हमे कैसे प्राप्त हो ? और हमारा भव-भ्रमण कैसे मिटे ?
व- चलो मम्मी जल्दी चलो | मैं अभी तैयार होकर पूजन में शामिल होती हूँ और ऐसे महावीर भगवान के जन्म कल्याणक को आनंदित होकर मानती हूँ |
म- हाँ चलो |