जैनधर्म

प्रभा और अनुभा दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे | प्रभा रोज गाती रहती थी “जैन धर्म के हीरे-मोती मैं बिखराऊ गली-गली, ले लो रे कोई प्रभु का प्याला शोर मचाऊ गली-गली” | अनुभा रोज सोचती की आखिर ये कौनसे धनवान के हीरे लुटाती है | एक दिन उससे रहा नहीं गया तो उसने पूछ ही लिया |

अनुभा – अरे प्रभा ! ये तुम रोज क्या गाती रहती हो ? मेरी तो कुछ समझ में नहीं आता ! ये जैन किस उदार धनवान का नाम है जिसके हीरे-जवाहरात तुम इतनी आसानी से रोज लुटाने की बात करती हो ?

प्रभा – हाहा अनुभा! ये किसी व्यक्ति का नाम नहीं है | और न ही उसके पास जड़ संपत्ती है |

अनुभा – तो फिर आखिर ये है क्या ?

प्रभा – जैन धर्म तो जिनेन्द्र भगवान का दिखाया मार्ग है |

अनुभा – भगवान तो सुना था पर ये जिनेन्द्र भगवान कौन हैं ?

प्रभा – जिनेन्द्र अर्थात जिसने इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर ली हो | जो अतीन्द्रिय हो गए | ऐसे जिनेन्द्र भगवान के मार्ग पे चलने वाले जैन कहलाते हैं |

अनुभा – पर मैंने तो सुना था की जिनके नाम में जैन लगा होता है वो जैन होते हैं |

प्रभा – सिर्फ नाम में जैन लगाने से कोई जैन नहीं बन जाता | सच्चा जैन तो वही होता है जो जिनेन्द्र भगवान के बताये रास्ते पर चलकर उन जैसा बने |

अनुभा – ओह ! ये तो समझ आगया लेकिन जैन धर्म के हीरे-मोती कौनसे हैं ?

प्रभा – कुछ हो तो बताऊ पर जिन धर्म तो अलौकिक है | मैं चाहूँ भी तब भी तुम्हे सारे हीरे-मोती नहीं बता सकती |

अनुभा – अरे ! कुछ के बारे में तो बताओ |

प्रभा – तो सुनो ! जिन धर्म अनेकांतवादी है | किसी द्रव्य को अलग-अलग दृष्टि कोण से देखना और एक ही दृष्टिकोण को सत्य न मानते हुए सारे दृष्टिकोणों को मानना, वह अनेकांत होता है |

अनुभा – अच्छा जैसे मैं अपनी माँ की बेटी हूँ, अपने भाई की बहन और तुम्हारी दोस्त | ये सब सच होने पर भी मैं तो एक ही अनुभा हूँ |

प्रभा – अभी समझी तुम !! अगला मोती है अहिंसा | किसी जीव को मारना, सताना या उसका दिल नहीं दुखाना अहिंसा है |

अनुभा – जैन तो अहिंसा के लिए विश्व में माने जाते हैं |

प्रभा – ऐसे ही और भी हीरे-मोती हैं जो मैं तुम्हे अभी इतने कम समय में नहीं बता सकती |

अनुभा – तुम्हे बताना ही होगा प्रभा | क्या तुम मेरी सच्ची मित्र नहीं हो?

प्रभा – अगर और जानना है तो तुम भी मेरे साथ पाठशाला चला करो | वहाँ पर गुरूजी रोज जिन धर्म के हीरे-मोती लुटाते हैं |

अनुभा – ठीक है | आज से में रोज पाठशाला जाऊंगी | फिर में भी गाऊँगी ” जैन धर्म के हीरे-मोती मैं बिखराऊ गली-गली ” |

प्रभा– वाह! ये तो बहुत अच्छा सोचा तुमने |


अगर आपको भी जैन धर्म के हीरे-मोती चाहिए तो जिनवाणी का अभ्यास करें, पाठशाला जाएं और जिन मार्ग पर चलें | तब तक सुनिए ये सुन्दर भजन-