कारण परमात्मा

“तमे कारण परमात्मा छो एम नक्की कर “

ऐसा बोलते हुए पंडित जी समर्थ की दुकान के सामने से निकल रहे थे | तभी उन्हें समर्थ की आवाज़ सुनाई दी |

समर्थ- अरे पंडितजी ! सुनिए |

पंडितजी- हाँ समर्थ बेटा ! बोलो क्या हुआ ?

समर्थ- ये क्या कह रहे थे अभी आप ? नक्की कर ??

पंडितजी- वो तो आज प्रवचन में आया था की “मैं कारण परमात्मा हूँ ऐसा निश्चय करो “|

समर्थ- अच्छा !आप तो ठहरे ज्ञानी | हम को इन सब बातो का ज्ञान कहा | अब कौन कारण परमात्मा ? कैसा निश्चय ?

पंडितजी- ये ही तो बात है समझने की ! हम सब ही कारण परमात्मा हैं लेकिन अपने को पामर मानते रहने से अनादि संसार में भटक रहे हैं | मैं कारण परमात्मा हूँ ऐसा जान लें तो भव का अंत हो जाये | जीव अपनी प्रभुत्व शक्ति को भूल गया है |

समर्थ- कारण परमात्मा अेटले शु ? अने उसका निश्चय कैसे होगा ?

पंडितजी- कारण परमात्मा अथार्त हम इसी समय सिद्ध प्रभु जैसे हैं | पर अभी पर्याय में अपनी प्रभुता प्रगट नहीं हुई है, सिद्ध भगवान को वो प्रभुता प्रगट हो गयी है |

समर्थ- आप कहते हो की अभी ही कारण परमात्मा हो लेकिन जब कारण है तो कार्य क्यों नहीं होता ?

पंडितजी- हे प्रभु ! कार्य उसी को होता है जिसने ऐसा जाना-माना की मैं कारण परमात्मा हूँ | वो आता है ना “प्रभुता की ही बात की श्रद्धा तनिक लाओ, अपनी प्रभुता देख लो बाहर न भरमाओ” |

समर्थ- मैं स्वयं प्रभु हूँ ऐसी श्रद्धा कैसे होगी ? मुझे तो कुछ समझ नहीं आता !!

पंडितजी- इस देह में रहते हुए भी हमारी प्रभुता किंचित कम नहीं हुई | अगर होती तो शरीर सहित अरिहंत परमात्मा को प्रभु कौन मानता ?

समर्थ- खरेखर बात की ये तो अापने, परन्तु मैं अगर प्रभु हूँ तो आज तक चौरासी लाख योनियों में क्यों घूम रहा हूँ ?

पंडितजी- “प्रभुता को ही भूल कर भव-भव में भ्रमाते, हीनता अनुभवने से ही हीन कहाते | प्रभुता का अनुभव करो और प्रभुता प्रगटाओ, अपनी प्रभुता देख लो बाहर न भरमाओ || ” – तुम्हे पता है ये बेचारी चींटी, बिचारे पेड़ बिचारे क्यों कहलाये ? क्यूंकि इन्होने अपने आप को बिचारा अनुभव किया था|

समर्थ- अच्छा तो मुझे अपने को प्रभु देखना है, पामर नहीं |

पंडितजी- करोड़पति सेठ मंदिर नहीं जाये, स्वाध्याय नहीं करे उसकी मृत्यु हो जाये और पत्नी रोए की बिचारे कुछ कर नहीं पाए | सेठ को भी बिचारा सुनना पड़े | प्रभु हूँ इसका निर्णय तभी होगा जब रोज इस बात का चिंतन-मनन होगा | वरना तो बिचारे ही रह जायेंगे हम |

समर्थ- आपने तो मेरी आंखे खोल दी पंडितजी | कुछ पल की धूल कमाने के लिए मैं अपनी प्रभुता भूल गया | मुझे बेचारा नहीं बनना | अबसे मैं भी अपने को कारण परमात्मा मानूंगा और ऐसा अनुभव व निश्चय करने के लिए रोज मंदिरजी आऊंगा |

पंडितजी– ये तो बहुत ही सरस विचार आया तुम्हे | अच्छा तो मैं चलता हूँ अब ! जय जिनेन्द्र |

समर्थ- जी पंडितजी ! जय जिनेन्द्र |


पंडितजी तो चले गए पर क्या अपने अपने को कारण परमात्मा जाना ? यदि नहीं, तो निश्चय कीजिये और पर्याय में अपनी प्रभुता प्रगट कीजिये |

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